गुरुवार, दिसंबर 18, 2008

पावर गोल डब्बा गोल ये कैसा आतंकवाद है भई

पावर गोल डब्बा गोल ये कैसा आतंकवाद है भई

मुरैना 18 दिसम्बर , भये चुनाव लला अब काहे की बिजली ! पूरे दिन और रात भर कटौती का कोहराम मचाती बिजली का तो यही संदेश है ! आप इसे राजनैतिक बदला या आतंकवाद कह लीजिये वैसे ग्वालियर चंबल का मीडिया तो इसे राजनीतिक प्रतिशोध बोल रहा ही है ! वैसे सच ये है कि ग्रामीण क्षेत्रोँ की दशा तो और भी ज्यादा बुरी है ! जनता की समस्या केवल बिजली कटौती तक ही हो ऐसा नहीं है , वोल्टेज फ्लक्चुयेशन्स भी कोई कम कहरकिया नहीं है, तकरीबन 60 वोल्ट से लेकर 500 वोल्ट तक चल रहे उच्चावच से जहाँ सैकडोँ लोगोँ के कीमती उपकरण अब फुँक कर लोगों का करोडोँ का नुकसान हो चुका है वहीँ आम जनता का रोजगार धन्धा पूरी तरह चौपट हो चुका है ! जनता की समस्याओं से कोई सरोकार न रखने वाली सरकार के नान टेक्नीकल मुख्यमंत्री और प्रशासन होने का भरपूर लाभ भ्रष्ट बिजली अधिकारी उठाते हैं और जम कर मूर्ख बनाते रहते हैँ !
जहाँ अन्धी अघोषित बिजली कटौती का दंश जनता झेल रही है वहीं म.प्र. में व्याप्त भारी बेरोजगारी के चलते लाखोँ का कर्ज लेकर स्वरोजगारी युवा बिजली टेंशन के चलते जहाँ भुखमरी और बदहाली में आत्महत्यायें कर रहें हैं वहीँ आपराधिक कार्योँ से भी जुड रहे हैं !
मालिक के बजाय नौकर बनाने पर तुली सरकार के खिलाफ अँचल के युवाओँ में भारी रोष व आक्रोष व्याप्त है !

 

दिमनी विधायक शिवमंगल सिंह की गद्दी खतरे में विधायक बने सहकारी नेताओं के पद पर संशय

दिमनी विधायक शिवमंगल सिंह की गद्दी खतरे में

विधायक बने सहकारी नेताओं के पद पर संशय

भोपाल। भाजपा की सरकार द्वारा सहकारी एक्ट में किया गया एक संशोधन उसके ही तीन संस्था प्रमुखों के आड़े आ गया है। विधायक निर्वाचित होने के साथ ही इन तीनों को अब सहकारी संस्था के अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ेगा या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति है।

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में सहकारी संस्थाओं पर काबिज तीन नेता आशारानी सिंह, शिवमंगल सिंह और विश्वास सारंग विधायक का चुनाव जीत कर आए हैं। आशारानी सिंह पन्ना कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की निर्वाचित अध्यक्ष हैं। शिवमंगल सिंह जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मुरैना के अध्यक्ष हैं और विश्वास सारंग चुनाव से कुछ माह पहले ही मप्र राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के अध्यक्ष बनाए गए थे। इन तीनों सहकारी नेताओं के विधायक चुने जाने से सहकारिता विभाग के अधिकारी एक बार फिर इससे संबंधित कानून के पन्ने पलट रहे हैं।

प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद मप्र सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की कुछ धाराओं में संशोधन किया गया था। ऐसी ही एक धारा 48 में प्रावधान किया गया है कि कोई भी विधायक किसी सहकारी संस्था के अध्यक्ष या प्रतिनिधि का चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं होगा। इसी धारा की एक उपधारा कहती है कि कोई विधायक अध्यक्ष पद पर आसीन है तो वह संस्था के उक्त पद के अयोग्य हो जाएगा। ये प्रावधान विधायक के सोसायटी का पदाधिकारी चुने जाने से संबंधित हैं।

राज्य में विधानसभा के गठन की अधिसूचना जारी हो चुकी है, इस नाते ये तीनों ही अब विधायक हो गए हैं। इसके साथ ही इनके सहकारी सोसायटी के अध्यक्ष पद की पात्रता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ का तर्क है कि अधिनियम में यह कहीं नहीं लिखा है कि सोसायटी का कोई अध्यक्ष विधायक का चुनाव जीतता है तब क्या स्थिति होगी। सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष और अपेक्स बैंक उपाध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत के अनुसार अधिनियम की बाध्यता केवल विधायकों के सोसायटी अध्यक्ष बनने को लेकर है या यह सोसायटी अध्यक्षों के विधायक बनने पर भी लागू होगी, इसका परीक्षण कराया जाएगा।