गुरुवार, मई 21, 2009

मुरैना के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनुराग शर्मा का एक अंदाज यह भी

मुरैना के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनुराग शर्मा का एक अंदाज यह भी

पुलिस की नौकरी के अलावा एक बेहतर प्रतिभा और कला का धनी भी है यह अफसर

 

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

 

कई बार प्रतिभायें और विद्वता अपनी कलात्मक खूबियों को लेकर सरकारी वर्दी के पीछे कर्तव्य पालन की वेदी पर भेंट चढ़ जातीं हैं और अक्सर सरकारी अफसरों को हम सदा एक अलग नजरिये से देखते हैं !

मैंने इण्टरनेट पर भीड़ में से सदा कुछ विशिष्ट लोगों की तलाश की है, आज मैं कुछ तलाश रहा था कि अचानक एक जाना पहचाना चेहरा (जाने पहचाने लोग इण्टरनेट पर यदा कदा ही मिलते हैं) मेरी नजर में आया और मुरैना के कुन्तलपुर यानि कुतवार पर आलेख पढ़ते पढ़ते मुझे लगा कि किसी ने वाकई बड़ा बेहतरीन आलेख लिखा है वह भी मय चित्रों के ! जिज्ञासावश लेखक को जानने की इच्छा हुयी तो जो श्रीमान इस लेख के रचयिता थे उनकी प्रोफाइल देखकर मैं चौंक गया !

इस आलेख के रचयिता थे मुरैना की मशहूर पुलिस हस्ती भाई अनुराग शर्मा जो कि मुरैना में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हैं ! उसके बाद मैंने उनका सारा ब्यौरा और सारा ब्लाग देखा ! मुझे कुछ खास बात लगी तो मैंने आपके साथ शेयर करना उचित समझा !

अभी तक आप सब हमारे बिहार के मुजफ्फरनगर के डी.आई.जी. पुलिस अरविन्द पाण्डेय से खास परिचित हो ही गये होंगे ! उनकी प्रतिभा, कला और भावनाओं का वाकई मैं कायल हूँ और जब भी उनकी कोई नई पोस्ट आती है, मैं तुरन्त मॉडरेशन में प्रकाशित कर देता हूँ ! उनकी भावनायें और रचनायें इतनी श्रेष्ठ होतीं हैं कि लगता है कि काश हर पुलिस आफिसर मानवता के इतने नजदीक होता ! उनके गीत और कविताये तो दिल को छू जातीं हैं , कुछ गीत तो उन्होंने अपनी बिटिया के स्वर में प्रस्तुत किये हैं ! हालांकि पाण्डेय जी शायद तकनीकी स्त्राेतों व संसाधनों का बेहतर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं या शायद अनभिज्ञ हैं, वरना और भी करिश्मा उभर कर आता ! अब तो उनका प्रकरणों को सुलझाने का सामाजिक व पारिवारिक स्टाइल भी मुझे खूब भाया !

अभी तक अरविन्द पाण्डेय भैया का इण्टरनेट पर धमाल मचा था लेकिन अब हमारे मुरैना के एडीशनल एस.पी. अनुराग शर्मा जी ने भी दस्तक दे दी है ! और एण्ट्री भी काफी धमाकेदार है !

आप जो लिखते हैं, आपके साहित्य व विचार से आपका व्यक्तित्व भली भांति जाना जा सकता है !

अनुराग शर्मा जी ने अपने ब्लाग पर जो भी अभी तक प्रस्तुत किया है वह जिज्ञासुओं और अन्वेषकों तथा उत्कृष्ट साहित्य के इच्छुकों के लिये बहुत बेहतर है ! उनके द्वारा लिखे गये लेख वाकई बेहतरीन उत्कृष्ट कोटि के हैं तथा भाषा व साहित्य के व्याकरण पर पकड़ भी इतनी बेहतर है कि अच्छे अच्छे पत्रकार व साहित्यकार (जो खुद को उच्च कोटि का साहित्यकार या पत्रकार मानते हैं वे अनुराग शर्मा जी को जरूर पढ़ें ) बेहद संतुलित व संयमित वाक्यावली स्वत: ही मनमोहन हैं !

उनके द्वारा प्रदत्त जानकारीयां प्रमाणिक व उच्च स्तरीय हैं और चौंकाने वाली भी क्योंकि जो काम हम लोग कर रहे हैं या हमें करना है उसे कोई और भी गुप्त तरीके से भी कर रहा है ! और हम सबसे अधिक बेहतर तरीके से ! फोटोग्राफों की क्वालिटी भी उच्च कोटि की है !

उनके आलेखों में विद्वता, रिसर्च और प्रमाणिकता का तत्व स्वत: ही महसूस हो जाता है ! हालांकि ककनमठ, कुतवार और बटेश्‍वरा पर उनका आलेख तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है और मैंने इस सम्बन्ध में उन्हें टिप्पणी के जरिये संकेत भी कर दिया है !

अनुराग जी का ब्लॉग ब्लागर पर बना हुआ है और ऍंग्रेजी वाक्य इम्प्रेशन्स के नाम से है ! आप यहाँ क्लिक करके उन्हें पढ़ सकते हैं ! http://yoursanurag.blogspot.com/ उनका ब्लागर पर आगमन फरवरी 2009 में हुआ है तथा पहली पोस्ट मार्च में लिखी है एवं अंतिम अपडेट 10 मई 2009 को हुयी है !

अनुराग शर्मा जी कवितायें भी लिखते हैं यहॉं ग्‍वालियर टाइम्‍स पर हम उनकी लिखी हुयी कविता दे रहे हैं जिससे आप उनके इस पहलू से भी वाकिफ हो सकें ! उनकी कविता तथा कुछ लेख आप ग्वालियर टाइम्स पर पढ़ सकेंगे ! तथा भविष्य में सिंडीकेशन के जरिये उनके ताजे अपडेट भी ग्वालियर टाइम्स पर देखने को मिलेंगे !

अनुराग शर्मा जी को पुराने फिल्मी गाने पसन्द हैं , उनके पसन्दीदा गायक जगजीत सिंह व चित्रा सिंह गजल गायक हैं फिल्मी गीत उन्हें यसुदास के और गुलजार के पसन्द हैं ! उन्हें अंग्रेजी फिल्में पसन्द हैं ! पसन्दीदा फिल्मों की उनकी सूची काफी लम्बी है ! अनुराग शर्मा की पसन्दीदा पुस्तकें शरलॉक होम्स, पेरी मेसन की किताबें, और राग दरबारी हैं ! अभी तक उनकी प्रोफाइल करीब 250 बार विजिट की गयी है !  

 

मुरैना के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनुराग शर्मा का एक अंदाज यह भी

मुरैना के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनुराग शर्मा का एक अंदाज यह भी

पुलिस की नौकरी के अलावा एक बेहतर प्रतिभा और कला का धनी भी है यह अफसर

 

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

 

कई बार प्रतिभायें और विद्वता अपनी कलात्मक खूबियों को लेकर सरकारी वर्दी के पीछे कर्तव्य पालन की वेदी पर भेंट चढ़ जातीं हैं और अक्सर सरकारी अफसरों को हम सदा एक अलग नजरिये से देखते हैं !

मैंने इण्टरनेट पर भीड़ में से सदा कुछ विशिष्ट लोगों की तलाश की है, आज मैं कुछ तलाश रहा था कि अचानक एक जाना पहचाना चेहरा (जाने पहचाने लोग इण्टरनेट पर यदा कदा ही मिलते हैं) मेरी नजर में आया और मुरैना के कुन्तलपुर यानि कुतवार पर आलेख पढ़ते पढ़ते मुझे लगा कि किसी ने वाकई बड़ा बेहतरीन आलेख लिखा है वह भी मय चित्रों के ! जिज्ञासावश लेखक को जानने की इच्छा हुयी तो जो श्रीमान इस लेख के रचयिता थे उनकी प्रोफाइल देखकर मैं चौंक गया !

इस आलेख के रचयिता थे मुरैना की मशहूर पुलिस हस्ती भाई अनुराग शर्मा जो कि मुरैना में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हैं ! उसके बाद मैंने उनका सारा ब्यौरा और सारा ब्लाग देखा ! मुझे कुछ खास बात लगी तो मैंने आपके साथ शेयर करना उचित समझा !

अभी तक आप सब हमारे बिहार के मुजफ्फरनगर के डी.आई.जी. पुलिस अरविन्द पाण्डेय से खास परिचित हो ही गये होंगे ! उनकी प्रतिभा, कला और भावनाओं का वाकई मैं कायल हूँ और जब भी उनकी कोई नई पोस्ट आती है, मैं तुरन्त मॉडरेशन में प्रकाशित कर देता हूँ ! उनकी भावनायें और रचनायें इतनी श्रेष्ठ होतीं हैं कि लगता है कि काश हर पुलिस आफिसर मानवता के इतने नजदीक होता ! उनके गीत और कविताये तो दिल को छू जातीं हैं , कुछ गीत तो उन्होंने अपनी बिटिया के स्वर में प्रस्तुत किये हैं ! हालांकि पाण्डेय जी शायद तकनीकी स्त्राेतों व संसाधनों का बेहतर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं या शायद अनभिज्ञ हैं, वरना और भी करिश्मा उभर कर आता ! अब तो उनका प्रकरणों को सुलझाने का सामाजिक व पारिवारिक स्टाइल भी मुझे खूब भाया !

अभी तक अरविन्द पाण्डेय भैया का इण्टरनेट पर धमाल मचा था लेकिन अब हमारे मुरैना के एडीशनल एस.पी. अनुराग शर्मा जी ने भी दस्तक दे दी है ! और एण्ट्री भी काफी धमाकेदार है !

आप जो लिखते हैं, आपके साहित्य व विचार से आपका व्यक्तित्व भली भांति जाना जा सकता है !

अनुराग शर्मा जी ने अपने ब्लाग पर जो भी अभी तक प्रस्तुत किया है वह जिज्ञासुओं और अन्वेषकों तथा उत्कृष्ट साहित्य के इच्छुकों के लिये बहुत बेहतर है ! उनके द्वारा लिखे गये लेख वाकई बेहतरीन उत्कृष्ट कोटि के हैं तथा भाषा व साहित्य के व्याकरण पर पकड़ भी इतनी बेहतर है कि अच्छे अच्छे पत्रकार व साहित्यकार (जो खुद को उच्च कोटि का साहित्यकार या पत्रकार मानते हैं वे अनुराग शर्मा जी को जरूर पढ़ें ) बेहद संतुलित व संयमित वाक्यावली स्वत: ही मनमोहन हैं !

उनके द्वारा प्रदत्त जानकारीयां प्रमाणिक व उच्च स्तरीय हैं और चौंकाने वाली भी क्योंकि जो काम हम लोग कर रहे हैं या हमें करना है उसे कोई और भी गुप्त तरीके से भी कर रहा है ! और हम सबसे अधिक बेहतर तरीके से ! फोटोग्राफों की क्वालिटी भी उच्च कोटि की है !

उनके आलेखों में विद्वता, रिसर्च और प्रमाणिकता का तत्व स्वत: ही महसूस हो जाता है ! हालांकि ककनमठ, कुतवार और बटेश्‍वरा पर उनका आलेख तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है और मैंने इस सम्बन्ध में उन्हें टिप्पणी के जरिये संकेत भी कर दिया है !

अनुराग जी का ब्लॉग ब्लागर पर बना हुआ है और ऍंग्रेजी वाक्य इम्प्रेशन्स के नाम से है ! आप यहाँ क्लिक करके उन्हें पढ़ सकते हैं ! http://yoursanurag.blogspot.com/ उनका ब्लागर पर आगमन फरवरी 2009 में हुआ है तथा पहली पोस्ट मार्च में लिखी है एवं अंतिम अपडेट 10 मई 2009 को हुयी है !

अनुराग शर्मा जी कवितायें भी लिखते हैं यहॉं ग्‍वालियर टाइम्‍स पर हम उनकी लिखी हुयी कविता दे रहे हैं जिससे आप उनके इस पहलू से भी वाकिफ हो सकें ! उनकी कविता तथा कुछ लेख आप ग्वालियर टाइम्स पर पढ़ सकेंगे ! तथा भविष्य में सिंडीकेशन के जरिये उनके ताजे अपडेट भी ग्वालियर टाइम्स पर देखने को मिलेंगे !

अनुराग शर्मा जी को पुराने फिल्मी गाने पसन्द हैं , उनके पसन्दीदा गायक जगजीत सिंह व चित्रा सिंह गजल गायक हैं फिल्मी गीत उन्हें यसुदास के और गुलजार के पसन्द हैं ! उन्हें अंग्रेजी फिल्में पसन्द हैं ! पसन्दीदा फिल्मों की उनकी सूची काफी लम्बी है ! अनुराग शर्मा की पसन्दीदा पुस्तकें शरलॉक होम्स, पेरी मेसन की किताबें, और राग दरबारी हैं ! अभी तक उनकी प्रोफाइल करीब 250 बार विजिट की गयी है !  

 

पशुपालक पौष्टिकता बढ़ाने के लिये भूसा/पुआल का यूरिया उपचार करें

पशुपालक पौष्टिकता बढ़ाने के लिये भूसा/पुआल का यूरिया उपचार करें

Article Presented BY : Zonal Public Relations Office , Gwalior – Chambal Zone

ग्वालियर,20 मई 09। पशुओं के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन हेतु हरा चारा व पशु आहार एक आदर्श भोजन है किन्तु हरे चारे का वर्ष भर उपलब्ध न होना तथा पशुआहार की अधिक कीमत पशु पालकों के लिए एक समस्या है।

      सामान्यत: धान और गेंहूँ का भूसा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है । लेकिन इनमें पोषक तत्व बहुत कम होते हैं । प्रोटीन की मात्रा 4 प्रतिशत से भी कम होती है । भूसे का यूरिया से उपचार करने से उसकी पौष्टिकता बढती है और प्रोटीन की मात्रा उपचारित भूसे में लगभग 9 प्रतिशत हो जाती है। पशु को यूरिया उपचारित चारा खिलाने पर उसको नियमित दिये जाने वाल पशुआहार में 30 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है । उपचार के लिये चार किलो यूरिया को 40 लीटर पानी में (समिति की दूध वाली केन के बराबर) घोलें । एक क्विंटल भूसे को जमीन में इस तरह फैलायें कि परत की मोटाई लगभग 3 से 4 इंच रहे । तैयार किये गये 40 लीटर घोल को इस फैलाये गये भूसे पर हजारे से छिड़कें । फिर भूसे को पैरों से अच्छी तरह चल-चल कर या कूद-कूद कर दबायें । इस दबाये गये भूसे के ऊपर पुन: एक क्विंटल भूसा फैलाएं और पुन:चार किलो यूरिया को 40 लीटर पानी में घोलकर, हजारे से भूसे के ऊपर छिड़काव करें और पहले की तरह इस परत  को भी चल-चल कर या कूद-कूद कर दबायें ।

      इस तरह एक के ऊपर एक सौ-सौ किलो की 10 पर्ते डालते जायें,घोल का छिड़काव करते जायें और दबाते जायें । उपचारित भूसे को प्लास्टिक शीट से ढक दें और उससे जमीन में छूने वाले किनारों पर मिट्टी डाल दें । जिससे बाद में बनने वाली गैस बाहर न निकल सके । प्लास्टिक शीट न मिलने की स्थिति में ढेर के ऊपर थोड़ा सूखा भूसा डालें । उस पर थोड़ी सूखी मिट्टी /पुआल डालकर चिकनी गीली मिट्टी /गोबर से लीप भी सकते हैं । एक बार में कम से कम एक टन (1000 किलो) भूसे का उपचार करना चाहिये । एक टन भूसे के लिए 40 किलो यूरिया और 400 लीटर पानी का आवश्यकता होती है ।

यूरिया को कभी जानवर को सीधे खिलाने का प्रयास नहीं करना चाहिये । यह पशु के लिए जहर हो सकता है । साथ ही भूसे के उपचार के समय यूरिया के तैयार घोल को भी पशुओं से बचाकर रखें ।

उपचार करने के लिए पक्का फर्श अधिक उपयुक्त रहता है । यदि फर्श कच्चा ही हो तो जमीन में भी एक प्लास्टिक शीट बिछाई जाती है । यह उपचार किसी बंद कमरे में या आंगन के कोने में अधिक सुविधाजनक रहता है ।

फसल की कटाई के समय यदि पशु पालक किसान खेत में या घर में चट्टा (बिटौरा/कूप) बनाकर भूसा रखते हों,तो चट्टा बनाने के समय ही भूसे को उपरोक्त विधि से उपचारित कर सकते हैं। इससे अतिरिक्त श्रम की बचत भी होगी । उपचार किये गये भूसे के ढेर को गर्मी में 21 दिन व सर्दी में 28 दिन बाद ही खोलें । खिलाने से पहले भूसे को लगभग 10 मिनट तक खुली हवा में फैला दें । जिससे उसकी गैस उड़ जाये । शुरूआत में पशु को उपचारित भूसा थोड़ा थोड़ा दें । धीरे-धीरे आदत पड़ने पर पशु इसे चाव से खाने लगता है।

 

मंगलवार, मई 19, 2009

लाभकारी है- नीबू वर्गीय फलों की खेती

लाभकारी है- नीबू वर्गीय फलों की खेती

Article Presented By: Zonal Public Relations Office, Gwalior-Chambal Zone

ग्वालियर,18 मई 09। नीबू वर्गीय फलों में माल्टा, मौसम्बी, किन्नू, संतरा, लेमन, कागजी नीबू, ग्रेपफ्रूट, चकोतरा आदि आते हैं । गिर्द क्षेत्र की जलवायु लगभग सभी प्रकार के नीबू वर्गीय फलों की खेती हेतु उत्तम है । परन्तु अभी तक इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कागजी नीबू,ही लोकप्रिय है एवं अधिकांश क्षेत्रों में इसकी खेती बड़ी आसानी से की जा रही है । माल्टा,मौसम्बी,नारंगी एवं किन्नू के पौधे भी जहाँ पर लगाये गये हैं उनकी वानस्पतिक वृद्वि व फलत अच्छी है । सीडलैस नीबू लगाने की इस क्षेत्र में काफी संभावनायें हैं ।

नीबू वर्गीय फलों की वृद्वि एवं फलत प्रारम्भ में अच्छी होती है । परन्तु समुचित रख-रखाव के अभाव में कुछ समय पश्चात इनकी वृद्वि धीरे-धीरे कम होने लगती है । प्रतिकूल घटकों के प्रभाव से नीबू वर्गीय फलों में हृास के लक्षण जैसे पौधों में पत्तियाँ पीली व छोटी हो जाना,टहनियाँ सूखना,फलों का आकार छोटा होना एवं फलत कम हो जाने से धीरे-धीरे पौधा अनुत्पादक हो जाता है । नीबू वर्गीय फलों के पौधों के ह्रास को रोकने के लिए एवं नये बगीचे लगाने से पहले कुछ जानकारियां रखना नितान्त आवश्यक होता है । मसलन उद्यान लगाने हेतु दोमट एवं बलुआ दोमट भूमि अच्छी रहती है जिसमें उचित जल निकासी हो सके।

भूमि का पी एच. मान 6 से 7.5 के बीच हो। स्वस्थ एवं विश्वसनीय स्त्रोत के पौधे ही रोपे जावें। पौधों को लगाते समय गङ्ढों में 40 ग्राम क्लोरोपाइरीफास दवा एवं 25 किलो सड़ा गोबर खाद/कम्पोस्ट  तथा 100 ग्राम डी.ए.पी.,125 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास डालें। फिर एक-दो पानी लगाने के बाद 125 ग्राम यूरिया प्रति वर्ष दें । इस मात्रा को पौधों की उम्र के हिसाब से हर साल बढ़ाते रहें । 'जब पौधे की उम्र दस साल हो जाये तब खाद एवं उर्वरक की मात्रा स्थिर कर देना चाहिये । उर्वरक की आधी मात्रा सितम्बर तथा आधी दिसम्बर में देना चाहिये । इसके अलावा दस साल की उम्र के पौधे को लेश तत्व 15 किलो मैग्नीशियम तथा 30 किलो सल्फर का उपयोग करें । साथ ही जिंक,कॉपर,बोसन,कैल्सियम,आयरन आदि सूक्ष्म तत्वों का भी छिड़काव करें ।

समय-समय पर उद्यानों/बगीचों में लगाये पौधों का अवलोकन कर उनके थालों की साफ सफाई एवं निंदाई-गुड़ाई तथा सिंचाई करते रहना चाहिये । जुलाई-अगस्त के महीनों में कागजी नीबू एवं किन्नू के पौधों में केंकर का प्रकोप अधिक होता है । अत: इसकी रोकथाम हेतु 3 ग्राम ब्लीटोक्स प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें तथा स्ट्रेप्टोसायक्लीन दवा का 100-200 ग्राम पी.पी.एम.का घोल का दो-तीन बार 15 दिनों के अन्तर से छिड़काव करें । यदि पौधों की जड़ों एवं तनों पर गौंद निकल आये तो 450 ग्राम कॉपर सल्फेट, 900 ग्राम चूना 9 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित जड़ तनों की छाल छील कर लेप कर दें।

साधारणत: पोषक तत्वों की कमी के लक्षण अलग-अलग पहचानना कठिन होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जिंक सल्फेट 2.25 कि.ग्रा.,कॉपर सल्फेट 1.35  कि.ग्रा.,मैग्नीशियम सल्फेट 0.90 कि.ग्रा.,फेरस सल्फेट 0.90कि.ग्रा.,बोरिक अम्ल 0.45 कि.ग्रा.,मैग्नीशियम सल्फेट 0.90 कि.ग्रा.,यूरिया 4.50 कि.ग्रा.,चूना 4.00कि.ग्रा.,पानी 450 लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह घोल एक हेक्टर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होगा ।

पुराने उद्यानों का जीर्णोद्वार-ऐसे बगीचे जो देखरेख की कमी के कारण अनुत्पादक हो गये हैं । उनकी अच्छी देखभाल कर आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बनाया जा सकता है । दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में पौधों की सूखी टहनियों की कटाई छंटाई करें। थालों की गुड़ाई कर प्रति पेड़ एक किलोग्राम डी.ए.पी.,750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास तथा 40-50 किलो ग्राम सड़े हुए गोबर खाद को भली भाँति मिला दें। तत्पश्चात पेड़ों की सिंचाई करें। जनवरी-फरवरी में फूल आने के बाद सिंचाई कम करें। नमी बनाये रखें जब तक फल सेट नहीं हो जाता अप्रैल में 750 ग्राम यूरिया,750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास प्रति पेड़ की दर से गुड़ाई कर थालों में मिला दें । 3-5 ग्राम एग्रीमीन नामक दवाई प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें । जुलाई-अगस्त में क्लाइटॉम्स या डायथेन जेड-78 दवा 3 ग्राम एक लीटर पानी में तथा यूरिया 1-2 प्रतिशत का घोल एक साथ मिलाकर छिड़काव करें । पुराने अनुत्पादक बगीचे से अधिक आर्थिक लाभ मिलेगा ।

नीबू वर्गीय फलों की उन्नत ढंग से खेती करने या इससे सम्बंधित समस्या के निराकरण हेतु जिले के उपसंचालक उद्यान एवं सहायक संचालक उद्यान तथा विकास खण्ड स्तर पर उद्यान अधीक्षक एवं ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारियों से सम्पर्क कर सकते हैं । 

 

सोमवार, मई 18, 2009

ग्रामीण पत्रकारिता – समर्पण, मिशन और सामाजिकता-आर.एम.पी.सिंह

ग्रामीण पत्रकारिता समर्पण, मिशन और सामाजिकता

-आर.एम.पी.सिंह  

rmpsingh50@yahoo.com अपर संचालक, जनसम्‍पर्क संचालनालय म.प्र;शासन भोपाल

Article Presented By: Zonal Public Relations Office- Gwalior –Chambal Zone

       ईश्वर ने गांव को बनाया, मनुष्य ने शहर बनाया । गांव में खेत हैं, खलिहान हैं, नदी है, तालाब है,बाग-बगीचा है, पक्षियों का कलरव है, रंभाती गायें हैं, वहां प्रकृति बसती है, भारत माता गांव में ही रहती है । बापू जी ने भी कहा था भारत की आस्था गाँव में रहती है । सुमित्रा नंदन पंत ने कहा - मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम।शहर बढ़ते गये गाँव लुटता चला गया। गाँवों में भी अब शहरों की नकल होने लगी । शहर गांव का शोषण करने लगा ।

      भारत की पत्रकारिता - स्वतंत्रता संग्राम की देन है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहीं न कहीं पत्रकारिता से जुड़े थे । वे पत्र निकालते थे, पत्रों में लिखते थे । उनका उध्देश्य था गुलामी की बेड़ी से भारत माता को मुक्त कराना । इस कार्य में वे सफल हुए । इमें आजादी मिली । आजादी के बाद जो ह्रास राजनीति का हुआ, वहीं पत्रकारिता का भी । हम गाँव से आये लेकिन गाँव को भूलते चले गये ।

       स्वतंत्रता प्राप्ति तक पत्रकारिता मिशन थी , अब प्रोफेशन हो गई । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उद्भव के पश्चात समाचारों में एक विस्फोट आया है । मुझे प्रसन्नता होती है जब छोटी-छोटी खबरें भी इलेक्ट्रॉनिक चैनेल्स पर आती हैं । लेकिन जिस प्रकार ' विलेज जर्नलिज्म' को उभर कर आना चाहिये, नहीं आया है । राजधानी और बड़े शहरों की पत्रकारिता का स्तर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों और सत्ता के गलियारों में बैठे नौकरशाहों के संबंधों के आधार पर मापा जाता है । गाँव की समस्याओं को सुलझाने में क्या मिलने वाला  है । शहर में शान है, शोहरत है, पैसे हैं । लेकिन गाँव में खबरें हैं। मौलिक खबर ।

       भगवान कृष्ण गाँव से जुड़े थे, तत्कालीन समस्याओं के निराकरण में क्रियाशील थे। समाज ने उन्हें भगवान बना दिया । भगवान राम शहर से गांवों में गये । उनका वनवास तत्कालीन 'रूरल जर्नलिज्म' से जुड़ा था । जब वे चलते थे, तो ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं की जानकारी लेते थे, उनसे चर्चायें करते थे ।

'' पूछत ग्राम वधु सिय सों सखि सांवर है सो रावर को है ''

और '' समाचार पुरवासिन्ह पाये ।''

उस समय शांति के क्षेत्र में कुछ राक्षसों द्वारा लूट-पाट की जाती थी । जो विरोध करता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था। अत: श्रीराम ने चित्रकूट से प्रस्थान के समय '' पत्रकार वार्ता'' बुलाई थी जिसमें यह घोषणा की थी कि इस धरती को मैं उत्पातियों से मुक्त कर दँगां '' और श्री राम के इस संदेश को ऋषि मुनियों और उनके आश्रम में रह रहे शिष्यों ने इतना प्रचारित प्रसारित किया कि रावण और उसकी लंका तक यह समाचार पहुंच गया कि श्रीराम मनुष्य नहीं, ईश्वर हैं । शारीरिक रूप से रावण को श्रीराम ने परास्त किया, परन्तु मानसिक रूप से उसे तत्कालीन मीडिया ने पराजित कर दिया था । ग्रामीण पत्रकारिता का प्रतिफल था कि जब श्रीराम अयोध्या से चले थे, तो एक मनुष्य थे, लेकिन 14 वर्ष के बाद जब लौटे तो भगवान बन गये थे ।

      यहां मैं दो पत्रकारों की चर्चा करना चाहूंगा। अमेरिका में '' विलेज जर्नलिज्म' के जनक हैं रूडी एवरामसन । वे रूरल रिपोर्टर के रोल मॉडल थे । उन्होंने अमेरिका में ' रूरल जर्नलिज्म संस्थान ' की स्थापना की थी । वे आजीवन इस बात के लिये संघर्ष करते रहे कि रिपोर्टिंग के माध्यम से जनता की सेवा करों । वे आजीवन अपने आप से अनजान बने रहे और ' आत्म महत्व ' को कभी महत्व नहीं दिया । उन्होंने ग्रामीण पत्रकारिता में अमेरिका में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया थ ।

       अपने देश में भी एक पत्रकार 'द हिन्दू ' के श्री पी साईंनाथ हैं जो इस पत्र में ' रूरल एफेयर्स ' के एडिटर हैं । उन्हें  ' ग्रामीण भारत की आवाज ' की संज्ञा दी गई है । सांईनाथ वर्तमान में रूरल रिपोर्टर में अग्रणी हैं । उन्होंने रूरल इंडिया पर 84 रिपोर्ट लिखे । उनकी प्रसिध्द पुस्तक है' ''Every body loves a good Drought''  श्री साईंनाथ आज भी ग्रामीण क्षेत्र की वास्तविकता से सवयं को परिचित कराने के लिये वर्ष में 280 दिन ग्रामीण क्षेत्र में बिताते हैं । उन्हें 2007 में रमन मेगासेसे पुरस्कार से नवाजा गया है  और भी कई पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले हैं । उनका मनना है कि आप जिस स्थान की रिपोर्टिंग करने जाते हैं- वहां के इतिहास, भूगोल, जलवायु आदि का पूरा ज्ञान होना चाहिये ।

क्या देखें -

      ग्रामीण क्षेत्र में मुख्य रूप से कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रीति-रिवाज, भेद-भाव, गरीबी, कुपोषण, वनों का क्षरण, खनिजों का दोहन आदि समस्यायें रहती हैं । आज के ढ़दृ'द्म कुछ तो अच्छा कर रहे हैं, कुछ ढ़दृ के माध्यम से पैसा कमा रहे हैं। ऐसे संगठनों पर भी आप सबकी दृष्टि रहनी चाहिये । आमजनों की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट करना ग्रामीण पत्रकारिता का उध्देश्य है ।

       मैं अपने विभाग के अधिकारियों से कहना चाहूंगा कि वे भी ग्रामीण क्षेत्रों में जायें। बहुत सी ऐसी बाते हैं जिसे आप लिख तो नहीं सकते , लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के ध्यान में लाई जा सकती हैं । इससे उसके निराकरण के प्रयास होंगे। जन सम्पर्क के लोग जनता से जुड़ें  तो उनके कार्य में और निखार आयेगा । छोटी से छोटी बात उच्च स्तर पर महत्वपूर्ण हो जाती है । आप अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट करते रहें। मीडिया में आने से पूर्व अधिकारियों को मालूम हो जाये ऐसा प्रयास आपके स्तर पर होना चाहिये ।