सोमवार, सितंबर 07, 2009

विशेष लेख : ऊर्जा - राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना - ग्रामीण क्षेत्रों में नया उजाला

विशेष लेख : ऊर्जा - राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना - ग्रामीण क्षेत्रों में नया उजाला

         ग्रामीण विद्युतीकरण को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिये एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम माना जाता है। यह अब सहज स्वीकार्य है कि बिजली अब एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता बन चुकी है और प्रत्येक घर में बिजली की सुविधा होनी ही चाहिए। ग्रामीण भारत में, व्यापक प्रभाव वाले आर्थिक और मानव विकास हेतु विद्युत आपूर्ति की आवश्कयता है। राष्ट्रीय विद्युत नीति में ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे बिजली देने की बात कही गई है। ग्रामीण विद्युतीकरण्ा नीति का उद्देश्य सभी घरों में बिजली की सुविधा प्रदान करना है।

 

       ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा को अब और सख्त बना दिया गया है ताकि किसी गांव को विद्युतीकृत घोषित करने के पूर्व पर्याप्त विद्युतीय अधोसंरचना की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। जनगणना 2001 के अनुसार देश में करीब 1.2 लाख गांवों में बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

 

       राज्यों द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण की मंथर गति को देखते हुए भारत सरकार ने मार्च 2005 में अपना अग्रगामी कार्यक्रम राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) की शुरूआत की। इसका उद्देश्य एक लाख अविद्युतीकृत गांवों में बिजली पहुंचाना और 2.31 करोड़ ग्रामीण बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) परिवारों को मुपऊत बिजली कनेक्शन प्रदान करना है। इस योजना के तहत जो बुनियादी ढांचा खड़ा किया जा रहा है, वह सभी घरों में बिजली का कनेक्शन देने के लिये पर्याप्त है। एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) परिवारों को बिजली आपूर्ति करने वाली कम्पनी की शर्तों आदि के फार्म भर उनसे बिजली के कनेक्शन लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।

 

 

योजना- योजना में परियोजनाओं के लिये 9 प्रतिशत पूजीगत राज सहायता (सब्सिडी) दी जाती है और इसमें निम्नलिखित गतिविधियां शामिल हैं - ग्रामीण विद्युत वितरण मेरुदंड (बैकबोन)(आरईडीबी), ग्रामीण विद्युतीकरण अधोसंरचना का सृजन (वीईआई), विकेन्द्रीकृत वितरित उत्पादन (डीडीजी) और आपूर्ति तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों को ग्रामीण परिवार विद्युतीकरण। विकेन्द्रीकृत वितरण उत्पादन (डीडीजी) योजना के तहत राज्य उन क्षेत्रों में नवीन एवं नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित परियोजनायें भी हाथ में ले सकते हैं, जहां इनको लगाने में खर्च कम हो। आरजीजीवीवाई के तहत डीडीजी परियोजनायें लगाने के लिये विस्तृत दिशानिर्देश जारी किये जा चुके हैं।

 

ग्यारहवीं योजना में भी आरजीजीवीवाई जारी है- योजना के अंतर्गत 68,763 गांवों में बिजली पहुंचाने और 83.1 लाख बीपीएल परिवारों को बिजली के मुपऊत कनेक्शन के लिये 97 अरब 32 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 234 जिलों की 235 परियोजनाओं की मंजूरी दी गई थी। दसवीं योजना के अंत तक 38.525 गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी थी।

 

       ग्यारहवीं योजना में आरजीजीवीवाई को जारी रखने की मंजूरी भारत सरकार ने 3 जनवरी, 2008 को दी और इसके लिये 2 लाख 80 अरब रूपये की पूंजीगत सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया। वे राज्य जिनमें अविद्युतीकृत गांवों और परिवारों की संख्या काफी ज्यादा है, उनपर इस योजना के तहत ज्यादा जोर दिया गया है। ये राज्य हैं - असम, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। जिन अन्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है वे हैं पूर्वोत्तर के विशेष श्रेणी वाले राज्य, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा उत्तराखंड, अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगने वाले जिले और नक्सल प्रभावित जिले। सौ से अधिक जनसंख्या वाली आबादियों को योजना में शामिल किया गया है।

 

       ऊर्जा मंत्रालय ने अब तक 534 जिलों के 118,146 गांवों में बिजली पहुंचाने और 2.45 करोड़ ग्रामीण बीपीएल परिवारों को नि:शुल्क कनेक्शन देने की मंजूरी दी है। 15 जुलाई 2009 तक 63,040 गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है और 63.6 लाख बीपीएल परिवारों को बिजली के मुपऊत कनेक्शन दिये जा चुके थे। मार्च 2012 तक सभी स्वीकृत परियोजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य है।

 

 

क्रियान्वयन- ग्रामीण विद्युतीकरण निगम योजना पर अमल करने वाली नोडल एजेंसी है। परियोजना पर तेजी से अमल के लिये पावर ग्रिड, एनटीपीसी, एनएचपीसी, और डीवीसी जैसे केन्द्रीय विद्युत उपक्रमों की सेवाओं को 4 राज्यों की बिजली कम्पनियों को उपलब्ध कराया गया है। परियोजनाओं पर प्रभावी और उम्दा क्रियान्वयन के लिये, मंत्रालय ने क्रियान्वयन की टर्न काद्ग (पूर्ण रूप से तैयार करके दी जाने वाली) पध्दति, त्रि-स्तरीय निगरानी व्यवस्था और मील का पत्थर आधारित परियोजना निगरानी का तरीका अपनाया है। इस योजना के तहत राज्यों से विद्युतीकृत गांवों को न्यूनतम 6 से 8 घंटे बिजली देने को कहा गया है। आरजीजीपीवाई के तहत विद्युतीकृत गांवों में वितरण के प्रभावी प्रावधान के लिये फ्रैंचाइजियों (अधिकृत एजेटों) की नियुक्ति अनिवार्य कर दी है। वितरण प्रबन्धन के लिये अधिकृत एजेंसियों (फ्रैंचाइजी) की व्यवस्था से ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अच्छे अवसर मिल रहे हैं। अब तक 99,643 गांवों में अधिकृत एजेंट नियुक्त किये जा चुके हैं।

 

निगरानी - मंत्रालय ने राज्यों से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समन्वय समिति गठित करने और त्वरित क्रियान्वयन पर विपरीत प्रभाव डालने वाली अन्तर्विभागीय समस्याओं के निराकरण के लिये इसकी नियमित बैठक आयोजित करने को कहा है। मंत्रालय ने स्थानीय मुद्दों को निपटाने और परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिये राज्यों को संसद सदस्यों और विधायकों सहित सभी दावेदारों (स्टैक होल्डर) को लेकर जिला स्तरीय समितियां गठित करने को कहा है। यह अनुभव रहा है कि जिन राज्यों में ये समितियां सक्रिय हैं और जिनकी नियमित बैठकें होती रहती हैं, वहां प्रगति अन्यों के मुकाबले बेहतर है।

 

       योजनान्तर्गत, मंत्रालय ने राज्यों के बिजली उपक्रमों और उनके एजेंटों के '' और '' वर्ग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना भी शुरू किया है। ग्यारहवीं योजना के दौरा 75,000 कर्मचारियों और 40,000 फ्रैंचाइजियों (एजेंटों) को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2009-10 के दौरान 2500 कर्मचारियों और 5000 एजेंटों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य है।

 

 

       आरजीजीवीवाई के अन्तर्गत राज्यों से न्यूनतम 6 से 8 घटों के लिये बिजली की आपूर्ति करने, लाइनों में बिजली दोड़ाने के लिये पर्याप्त विद्युत (ऊर्जा) का प्रबंध करने और योजनान्तर्गत सृजित वितरण अधोसंरचना को विद्युत आपूर्ति के लिये उप-पारेषण अधोसंरचना की स्थापना करने की प्रतिप्रबध्दता के तौर पर अपनी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनायें अधिसूचित करने को कहा गया है। दस राज्यों को ग्रामीण विद्युतीकरण की अपनी अधिसूचनायें अभी जारी करनी बाकी है। ये राज्य हैं - आंध्र प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड।

 

वेबसाइट - मंत्रालय ने एक वेबसाइट  http://rggvy.gov.in शुरू की है, जिसमें आरजीजीवीवाई परियोजनाओं के बारे में सम्पूर्ण ब्यौरा जैसे योजना के तहत शामिल और विद्युतीकृत गांवों आदि का विवरण दिया गया है। 'पब्लिक फोरम' नाम से एक पृथक विन्डो बनाई गई है, जिसमें अपने विचार और शिकायतें दर्ज कराई जा सकती है। इस वेबसाइट पर व्यापक विचारों एवं प्रश्नों का उत्तर सम्बंधित जिले में परियोजना पर अमल की उत्तरदायी एजेंसी तुरंत देती है।

 

एकीकृत बाल संरक्षण योजना--बच्चों के समग्र विकास की देखरेख

एकीकृत बाल संरक्षण योजना--बच्चों के समग्र विकास की देखरेख

एन सी जोशी

उप निदेशक (मी.एवं सं.) पसूका, नई दिल्ली

       महिला और बाल विकास मंत्रालय ने, ऐसे बच्चों के विकास के लिए जिनको देखरेख और संरक्षण की जरूरत होती है या फिर ऐसे बच्चे जिनकी कानून के साथ खींचतान चलती रहती है, हाल ही में एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईपीसीएस) नाम से एक नई योजना शुरू की है। इस व्यापक योजना में आपात कालीन आउटरीच (अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर) सेवाएं, आश्रय, पालन-पोषण, विशेष आवास, खोये और बिछुड़े बच्चों हेतु वेबसाइट और अन्य अनेक नवाचारी हस्तक्षेप सहित बच्चों को सहायता पहुंचायी जाती है। इस योजना से बेसहारा, आवारा, भिखारियों और यौनकर्मियों के बच्चों, मलिन बस्तियों और अन्य कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को विशेष रूप से लाभ पहुंचेगा।

 

उद्देश्य

 

       योजना के उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों की देखभाल में सुधार लाने के साथ-साथ उन कार्यों और स्थितियों से जुड़े जोखिमों को कम करना है जो बच्चों के साथ दर्ुव्यवहार, तिरस्कार, शोषण्ा, उपेक्षा और अलगाव को बढावा देते हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति- बाल संरक्षण की उन्नत सुविधाओं, बच्चों के अधिकार की सच्चाई के बारे में अधिक जन जागरूकता, भारत में स्थिति और संरक्षण, बाल संरक्षण हेतु स्पष्ट रूप से परिभाषित जिम्मेदारियां और प्रवर्तित जवाबदेहियां, कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को कानूनी सहारा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा सभी स्तरों पर कार्यशील संरचनाओं की स्थापना और साक्ष्य आधारित निगरानी तथा मूल्यांकन प्रणाली की स्थापना से हो सकेगी।

 

 

लक्षित समूह

 

       एकीकृत बाल संरक्षण योजना में उन बच्चों पर ध्यान दिया जाएगा जिनको देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है। इसके साथ ही उन बच्चों के संरक्षण पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाएगा जिनकी प्राय: कानून के साथ खींचतान चलती रहती है अथवा उससे साबका पड़ता है। आईसीपीए केवल वंचित और खतरों के बीच रहने वाले परिवारों के बच्चों, प्रवासी, अतिनिर्धन, और निम्न जाति के परिवारों के बच्चों, भेदभाव पीड़ित परिवारों के बच्चों, अल्पसंख्यकों के बच्चों, एचआईवीएड्स पीड़ित या प्रभावित बच्चों, अनाथ, मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले बच्चों, बाल भिखारियों, यौनशोषित बच्चों, कैदियों के बच्चों और आवारा तथा कामकाजी बच्चों तक ही सीमित नहीं है। इन बच्चों के अलावा अन्य मुसीबतज़दा बच्चों को भी इस योजना के तहत सहायता उपलब्ध होगी। इन बच्चों के बचाव और पुनर्वास के अलावा उनकी कानूनी तौर पर देखभाल भी की जाएगी। आईसीपीएस बनने के बाद अब उसके छत्र के नीचे पहले से मौजूद सभी बाल संरक्षण कार्यक्रम आ गए हैं। इनमें बाल न्याय कार्यक्रम, आवारा बच्चों हेतु एकीकृत कार्यक्रम, स्वदेशी दत्तक ग्रहण प्रोत्साहन हेतु शिशु गृहों को सहायता जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। आईसीपीएस में शामिल पहले के कार्यक्रमों में कुछ अतिरिक्त सुधार और संशोधन भी किये गए हैं।

 

       योजना के तहत चाइल्डलाइन के माध्यम से देखभाल, सहायता और पुनर्वास  सेवायें मुहैया करायी जाएंगी। इन सेवाओं में आपातकालीन आउटरीच सेवा, शहरी और अर्ध्दशहरी क्षेत्रों के जरूरतमंद बच्चों को मुक्त आश्रय, प्रयोजन के माध्यम से परिवार आधारित गैर-संस्थागत देखभाल, पालन-पोषण, दत्तक ग्रहण और तदोपरांत देखरेख, संस्थागत सेवायें - आश्रय स्थल, बाल भवन, पर्यवेक्षण गृह, विशेष गृह, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों हेतु विशिष्ट सेवायें, बिछड़ेखोये हुए बच्चों हेतु वेबसाइट, वेब-जनित बाल संरक्षण प्रबंधन सूचना प्रणाली और जरूरतमंदनवाचारी हस्तक्षेप के लिये सामान्य अनुग्रह सहायता शामिल हैं।

 

बच्चों हेतु मुक्त आश्रय

 

       आईसीपीएस में अन्य बातों के अलावा शहरी और अर्ध्दशहरी क्षेत्रों में जरूरतमंद बच्चों के लिये मुक्त आश्रय (ओपन शेल्टर्स) की स्थापना का प्रावधान किया गया है। शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बेघर और फुटपाथों पर रहने वाले बच्चों के अलावा बाल भिखारी हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। सर्वथा अकेले रह रहे इन बच्चों को देखभाल और सहारे की जरूरत है। भारत की करीब 29 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है, जिनमें से आधे से अधिक लोग अति दुष्कर परिस्थितियों में रह रहे हैं। आश्रय, स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि सुविधाओं से वंचित होने के कारण इनकी स्थिति और भी जटिल हो गई है। इन परिस्थितियों में सबसे ज्यादा कष्ट बच्चों को ही सहना पड़ता है। उनमें से अधिकतर बच्चे, चाहे उन्हें अभिभावकों का सहारा हो या नहीं, प्राय: यातायात के चौराहों, सड़कों, रेलवे स्टेशनों, सब्जी मंडी आदि पर खड़े दिखाई देते हैं। इन्हीं बच्चों की बढती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से मुक्त आश्रय बनाये जाएंगे। इन केन्द्रों में बच्चों के खेलने के स्थान के अलावा संगीत, नृत्य, नाटक, योग, ध्यान, कम्प्यूटर, इन्डोर और आउटडोर खेलों आदि की सुविधायें भी होंगी ताकि वे रचनात्मक गतिविधियों में भाग ले सकें। इन गतिविधियों से अर्थपूर्ण सामूहिक गतिविधियों, भागीदारी और पारस्परिक व्यवहार को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे उनका समग्र विकास सुनिश्चित हो सकेगा और वे सामाजिक रूप से गलत और अनैतिक गतिविधियों से दूर रहेंगे। इसके साथ ही, वे भोजन, पोषाहार और स्वास्थ्य संबंधी अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकेंगे। इन आश्रयों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के साथ-साथ सुविधानुसार समय पर अच्छी शिक्षा और व्यवसायिक प्रशिक्षण का प्रावधान होगा। बच्चे इनमें अपनी व्यक्तिगत चीजें और आय भी सुरक्षित रख सकेंगे। बच्चों की ऊर्जा को उत्पादक कार्यों में लगाने हेतु उनके मार्गदर्शन और परामर्श के अलावा कौशल-विकास शिक्षा की व्यवस्था भी की जाएगी।

 

       इस योजना पर अमल के लिये सरकार ने इस वित्त वर्ष में 60 करोड़ रुपये आबंटित किये हैं। केन्द्र सरकार, योजना के विभिन्न घटकों पर अमल और उन पर राज्यों का समर्थन सुनिश्चित करने के लिये एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है।

 

ग्रामीण विकास: नरेगा-ग्रामीण भारत में बदलाव लाने का अभियान

ग्रामीण विकास

नरेगा-ग्रामीण भारत में बदलाव लाने का अभियान

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डॉ. अतुल कुमार तिवारी *

* निदेशक (एम एवं सी), पसूका, नई दिल्ली

 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (नरेगा) में और अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए इसमें और सुधार किया जाएगा। इस कार्यक्रम में मौजूदा कार्यों के अतिरिक्त और कार्य शामिल करने के लिए ऐसे कार्यों की पहचान की जाएगी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 63 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह घोषणा की।

 

नरेगा सरकार की महत्वपूर्ण (्फ्लैगशिप) योजनाओं में से एक है जिसे आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से 2 फरवरी 2006 को शुरू किया गया था। अब तक देश के 200 जिलों में यह योजना लागू की गई है। फिलहाल देश के सभी 614 जिलों में इस योजना का विस्तार किया गया है। इस कानून का उद्देश्य वित्त वर्ष के दौरान हर ग्रामीण परिवार को कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देना है। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बिना दक्षता वाले हाथ के कार्य शामिल किए गए हैं और स्वैच्छिक रूप से ऐसे कार्य करने के इच्छुक लोगों को ये कार्य उपलब्ध कराए जाते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ से अब तक 10 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवार लाभान्वित हो चुके हैं। इसने 2008-09 में 4,479 करोड़ से अधिक परिवारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए। इसने ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भी योगदान दिया है।

 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले हर ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने पर जोर देता है। इस कानून की खास बातों में  निम्नलिखित शामिल हैं-

·                                             समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान,

·                                              रोजगार उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकारों के वास्ते प्रोत्साहन-हतोत्साहन संरचना,

·                                              रोजगार उपलब्ध कराने की लागत का 90 प्रतिशत भार केंद्र वहन करता है। अगर निर्धारित समय में राज्य सरकार रोज़गार उपलब्ध नहीं कराती  तो अपने खर्च पर बेरोजगार भत्ते का भुगतान,

·                                              श्रम प्रधान कार्यों के कारण ठेकदारों और मशीनों के इस्तेमाल को रोकना। इस कानून में महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी का भी प्रावधान है।

 

प्रमुख विशेषताएं

नरेगा के कार्य भावी ज़रूरतों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी परिसंपत्तियों का सृजन करने के इरादे से कराए जाते हैं। इनमें जल संरक्षण और जल संभरण, सूखे से बचने के उपाय (वन रोपण एवं वृक्षारोपण सहित), सूक्ष्म एवं लघु सिंचाई कार्यों सहित सिंचाई नहरें, सिंचाई सुविधा का प्रावधान, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों या गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों या भूमि सुधारों के लाभान्वितों अथवा सरकार की इन्दिरा आवास योजना के तहत लाभार्थियों वाले परिवारों की अपनी भूमि पर बागवानी रोपण और भू-विकास सुविधाएं, टंकियों से गाद निकालने सहित पारंपरिक जल निकायों का जीर्णोध्दार, भू-विकास, जल भराव वाले क्षेत्रों में जल निकासी सहित बाढ़ नियंत्रण और संरक्षण कार्य, हर मौसम के लिए सुगम ग्रामीण संपर्कता, तथा राज्य सरकारों से परामर्श के बाद केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचित होने वाले अन्य कार्य शामिल हैं।

वर्तमान वित्तीय वर्ष (2009-10) के दौरान नरेगा के तहत अब तक निम्नलिखित गतिविधियां चलाई गई हैं :

 

नरेगा के तहत कार्य

शुरू किए गए कार्यों की संख्या

 

पूरे किए गए कार्यों की संख्या

 

सड़क संपर्कता

 

335873

 

44177

 

बाढ़ नियंत्रण एवं संरक्षण कार्य

 

46980

 

9830

 

जल संरक्षण एवं जल संभरण

 

442125

 

57959

 

सूखा रोकने के उपाय

 

143945

 

9991

 

सूक्ष्म सिंचाई कार्य

 

112677

 

15638

 

किसानों के स्वामित्व वाली भूमि में सिंचाई सुविधा का प्रावधान

 

394223

 

72053

 

पारंपरिक जल निकायों का जीर्णोध्दार

 

209049

 

24953

 

भू-विकास कार्य

 

258345

 

31658

 

ग्रामीण विकास मंत्रालय से अनुमोदित कार्य

 

17478

 

1270

 

 

अधिकार आधारित ढांचा

 

बिना दक्षता वाला हाथ का कार्य करने के इच्छुक ग्रामीण परिवार के सभी वयस्क सदस्यों को रोज़गार मांगने का अधिकार है। ऐसे परिवार जॉब कार्ड के लिए ग्राम पंचायत में आवेदन करेंगे। ग्राम पंचायत आवेदक की उम्र और स्थानीय निवास स्थान का सत्यापन करेगी। ग्राम पंचायत सत्यापन के बाद, परिवार को फोटो सहित जॉब कार्ड निशुल्क जारी करेगी। जॉब कार्ड परिवार के पास ही रहना चाहिए। जॉब कार्ड धारक काम के लिए ग्राम पंचायत में आवेदन कर सकताती है जो उसे कार्य के लिए आवेदन की दिनांकित रसीद जारी करेगी।

 

रोज़गार की समयबध्द गारंटी

 

कार्य के लिए आवेदन करने के बाद 15 दिन के भीतर ग्राम पंचायत (स्थानीय स्वशासन निकाय) रोज़गार उपलब्ध कराएगी, अन्यथा आवेदक को बेरोज़गार भत्ते का भुगतान किया जाएगा। परिवार अपनी आवश्यकता के आधार पर वित्तीय वर्ष में 100 दिन तक के रोज़गार की गारंटी प्राप्त कर सकता है।

 

बेरोज़गार भत्ता

 

यदि अग्रिम आवेदन के मामले में रोज़गार के लिए आवेदन प्राप्त होने की तिथि के बाद या रोज़गार मांगने की तिथि के बाद 15 दिन के भीतर, आवेदक को रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता तो राज्य सरकार उसे बेरोज़गार भत्ता देगी।

 

वित्तीय निष्कर्ष

 

मजदूर को मजदूरी की दर पर मजदूरी का भुगतान बैंक खातेडाकघर के खाते में किया जाएगा। मजदूरी का भुगतान हर सप्ताह किया जा सकता है और किसी भी मामले में भुगतान में 15 दिन से अधिक की देरी नहीं होनी चाहिए।

 

विकेंद्रीकरण

 

ग्राम सभा (स्थानीय निकाय) किए जाने वाले कार्यों  की सिफारिश करेगी। ग्राम पंचायतें कम से कम 50 % कार्यों का कार्यान्वयन करेंगी। पंचायती राज संस्थाओं की योजना बनाने, निगरानी और कार्यान्वयन में  प्रमुख भूमिका होगी।

 

कार्य स्थल प्रबंधन और सुविधाएं

 

कार्य स्थल पर कार्य के विवरण के साथ नागरिक सूचना बोर्ड रखा जाएगा। कार्य स्थल पर क्रेश (शिशु सदन), पेय जल, प्राथमिक स्वास्थ्य सहायता और शेड उपलब्ध कराए जाएंगे। काम करने वाले मजदूरों के नाम रजिस्टर में दर्ज होंगे और कार्य स्थल निरीक्षण के लिए खुला रहेगा। समय पर मापन सुनिश्चित किया जाएगा।

 

महिला सशक्तिकरण

 

कम से कम एक तिहाई श्रमिक महिलाएं होनी चाहिए।

 

पारदर्शिता एवं जवाबदेही

 

नरेगा में पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सामाजिक ऑडिट की अनिवार्य व्यवस्था, हर स्तर पर नियमित रूप से निगरानी और शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की गई है।

 

सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल

 

निगरानी, डिज़ाइन निर्माण और पारदर्शिता के लिए वैबसाइट www.nrega.nic.in बनाई गई है।

 

वित्तीय व्यवस्था

 

योजना का 90 % खर्च केंद्र सरकार और 10 % खर्च राज्य सरकारें वहन करेंगी।

 

बीमा सुरक्षा

 

नरेगा के श्रमिकों को जनश्री बीमा योजना की सुरक्षा उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।

 

बजटीय आवंटन

 

वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान नरेगा के लिए 16,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था जिसे संशोधित करके 30,000 करोड़ रुपए कर दिया गया था। वर्तमान वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नरेगा के तहत 30,100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।

कुल व्यय और मजदूरी वितरण

 

वर्ष

 

मजदूरी पर व्यय की गई राशि (करोड़ रुपए में)

 

कुल व्यय (करोड़ रुपए में)

 

2006-07

 

5,842.37

 

8,823.35

 

2007-08

 

10,738.47

 

15,856.89

 

2008-09

 

18,165.57

 

1,34,582.29

 

2009-10 (13 अगस्त 2009 तक)

 

6,314.86

 

8,561.65

 

कुल योग

 

41,061.27

 

1,67,824.18

 

 

रोज़गार सृजन

योजना के प्रारंभ से अब तक 612.65 करोड़ व्यक्तिदिवसों का रोज़गार सृजन किया गया है।

 

वर्ष

व्यक्तिदिवस (करोड़ में )

परिवारों की संख्या जिनको रोज़गार उपलब्ध कराया गया (करोड़ में)

 

2006-07

 

90.50

 

2.10

 

2007-08

 

143.59

 

3.39

 

2008-09

 

214.56

 

4.50

 

2009-10 (13 अगस्त 2009 तक)

 

73.5

 

2.28

 

कुल योग

 

612.65

 

12.27

 

 

सामाजिक समावेशन

 

अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और महिलाओं की भागीदारी

 

वर्ष

 

अनुसूचित जाति

 

अनुसूचित जनजाति

 

महिलाएं

 

2006-07

 

25 %

36 %

41 %

2007-08

 

27 %

29 %

43 %

2008-09

 

29.31 %

25.41 %

47.88 %

2009-10 (13 अगस्त 2009 तक)

 

28.94 %

23.99 %

52.01 %

 

गरीबी पर प्रभाव

 सशक्तिकरण के अवसरों और मजदूरी की दरों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में महत्वपूर्ण कमी आई है। नरेगा के कार्यान्वयन के बाद कृषि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी महाराष्ट्र में रु. 47 से बढ़कर रु. 72, उत्तर प्रदेश में रु. 58 से बढ़कर रु. 100, बिहार में रु. 68 से बढ़कर रु. 81, पश्चिम बंगाल में रु. 64 से बढ़कर रु. 75, मध्य प्रदेश में रु. 58 से बढ़कर रु. 85, जम्मू-कश्मीर में रु. 45 से बढ़कर रु. 70 और छत्तीसगढ़ में रु. 58 से बढ़कर रु. 72 हो गई। ये तो कुछ ही उदाहरण हैं। अन्य सभी जगह भी कृषि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर नरेगा के तहत दी जाने वाली औसत मजदूरी 2006-07 में रु. 65 थी जो 2008-09 में रु. 84 हो गई। इस वर्ष  मजदूरी के रूप में कुल धन का 67 % से अधिक हिस्सा इस्तेमाल किया गया (रु. 18146.93 करोड़ )।

 

आमदनी और खरीद क्षमता पर प्रभाव

ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी की दर और कार्यदिवसों की संख्या में वृध्दि से ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ गई है। आमदनी बढ़ने के फलस्वरूप ग्रामीण परिवारों की अनाज, अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदने और शिक्षा एवं स्वास्थ्य की देखभाल करने की  क्षमता में वृध्दि हुई है।

 

प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव

शुष्क और ऊसर क्षेत्रों में जल स्तर बढ़ा है क्योंकि नरेगा के तहत जल संरक्षण और सूखा रोकने के उपाय जैसे अनेक कार्य किए गए हैं। वित्त वर्ष 2008-09 में मध्य दिसम्बर 2008 तक 20.71 लाख कार्य किए गए जिनमें से 47 प्रतिशत जल संरक्षण से संबंधित हैं, व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिए सिंचाई सुविधाओं के प्रावधान का योगदान लगभग 19 प्रतिशत, सड़क संपर्कता 17 प्रतिशत, भूमि विकास 16 प्रतिशत  और  शेष 1 प्रतिशत  कार्य अन्य गतिविधियों से संबंधित हैं।

 

ग्रामीण शासन संरचना पर प्रभाव

 

·                                             पंचायती राज संस्थाएं और ग्राम सभाएं सक्रिय हो गई हैं।

·                                             नरेगा के मजदूरों के लिए बैंकों और डाकघरों में 5.77 लाख से अधिक बचत खाते खोले गए हैं।

·                                             जनश्री बीमा योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीमा कवर के दायरे में नरेगा के मजदूरों को भी लाया जा रहा है।

·                                             1 करोड़ 16 लाख मस्टर रॉल और 5 करोड़ 70 लाख जॉब कार्ड वेबसाइट (nrega.nic.in) पर रखे गए हैं।

 

राष्ट्रीय हैल्पलाइन

 

सरकार को शिकायत दर्ज कराने और पूछताछ के लिए मजदूरों और अन्य व्यक्तियों को समर्थ बनाने के लिए टोल फ्री (मुफ्त काल की सुविधा वाला) नम्बर 1800110707 स्थापित किया गया है। ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोवा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने मजदूरों के लिए हैल्पलाइन शुरू की है।

 

सामाजिक ऑडिट

 

एक लाख 80 हजार ग्राम पंचायतों में सामाजिक ऑडिट कराया गया है। राज्यों को नरेगा के प्रत्येक कार्य का 3 महीने के भीतर सामाजिक ऑडिट कराने का निर्देश दिया गया है।

 

परिवारों को गारंटी के साथ रोज़गार सुनिश्चित करने के क्रम में, इस कानून के तहत अपने कानूनी अधिकारों के बारे में ग्रामीण परिवारों में अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए गहन आईईसी गतिविधियां चलाई गई हैं। राज्यों पर जोर दिया गया है कि वे कार्यान्वयन एजेंसियों में समर्पित कर्मियों को तैनात करें। ऐसे समर्पित कर्मियों का वेतन इस कानून के तहत स्वीकार्य प्रशासनिक खर्चों से पूरा किया जाता है। राज्यों को यह सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए गए हैं कि मजदूरों की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त संख्या में कार्य उपलब्ध हों। नरेगा के कार्यान्वयन की निगरानी नियमित आधार पर की जाती है। राष्ट्रीय स्तर के निगरानी कर्ता और क्षेत्र अधिकारी इस कानून की प्रगति के अवलोकन के लिए विभिन्न जिलों का दौरा करते हैं। आईआईएम, आईआईटी, कृषि विश्वविद्यालय और अन्य सामाजिक विज्ञान संस्थाएं राज्यों में नरेगा के कार्यान्वयन के आकलन में संलग्न हैं। बैंकों और डाकघरों के जरिए अदक्ष मजदूरों के वेतन के भुगतान में पारदर्शिता सुनिश्चित करना इस कानून की महत्वपूर्ण विशेषता है।  www.nrega.nic.in वेबसाइट पर सभी आंकड़े अपलोड किए गए हैं तथा सभी प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शन के लिए नागरिक सूचना बोर्ड लगाए गए हैं। नरेगा संबंधी शिकायतों और पूछताछ के लिए नरेगा के तहत शिकायत निपटान प्रणाली और राष्ट्रीय टोल फ्री टेलीफोन हैल्पलाइन स्थापित की गई है। राज्यों से भी ऐसी ही हैल्पलाइन   शुरू करने का आग्रह किया गया है। यह कानून लाखों ग्रामीण लोगों के जीवन में खुशियां लाने में मददगार रहा है और पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इसमें और सुधार से यह आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।