शनिवार, अगस्त 14, 2010

64वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन की मुख्य विशेषताएं

64वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन की मुख्य विशेषताएं

 

 

Ø     यह सुनिश्चित करने के प्रयास करने चाहिए कि ऐसा समग्र विकास हो जिससे सभी लोग समृध्द बनें।

Ø     राजनीतिक दृष्टिकोण, आर्थिक प्रगति और वैज्ञानिक तरक्की को मानव कल्याण, सहनशीलता, आपसी सम्मान और निस्वार्थ भावना के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

Ø      युवा राष्ट्र के भविष्य के निर्माता हैं। हमें उनमें बलिदान, समर्पण, देशभक्ति और राष्ट्र सेवा की भावना का संचार करना चाहिए।

Ø     वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था का लचीलापन इस बात का प्रमाण था कि हम अनेक दूसरे देशों की तुलना में इस संकट से बेहतर ढंग से निपट सकें। हमारा भविष्य बहुत सी संभावनाओं और इरादों से भरपूर है।

Ø     समावेशी विकास राष्ट्र की आर्थिक इमारत के स्तम्भों में से एक है। हम केवल तभी प्रतिस्पध्र्दा कर सकेंगे जब कोई भी भूखे पेट न सोए, जब कोई फुटपाथ पर न सोए और जब हर बच्चा स्कूल जाए।

Ø     शिक्षा, क्षमता निर्माण, आवास, स्वास्थ्य देखरेख और पोषण सरकार के कार्यक्रम की प्राथमिकता हैं।

Ø     शिक्षा के अधिकार के कानून ने मुपऊत और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा बच्चे का मूल अधिकार बना दिया है।

Ø      माध्यमिक शिक्षा का भी सार्वभौमिकरण महत्वपूर्ण है जो राष्ट्र को बौध्दिक शक्ति उपलब्ध कराएगी।

Ø     सभी क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा देश को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के मामले में अग्रणी बनाया जाएगा।

Ø     भौतिक ढांचागत सुविधाओं के निर्माण में तेजी लाने की ज़रूरत है।

Ø     उद्योगों को निरंतर विकास करना चाहिए। भारतीय कम्पनियों को कुशल और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्ध्दी बनने के लिए प्रयास जारी रखने चाहिए।

Ø      दूसरी हरित क्रान्ति की दिशा में आगे बढने क़े लिए नई दिशाओं और ताजा विचारों की ज़रूरत है ताकि कृषि उत्पादन, उत्पादकता और मुनाफा बढ सक़े।

Ø     उद्योगों को कृषि के साथ जोड़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को आधार उपलब्ध होगा तथा कृषि संबंधी व्यापार को भी बढावा मिलेगा।

Ø     दक्षता विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और समाज कल्याण कार्यक्रमों के जरिए ग्रामीण गरीबों और कृषि श्रमिकों की सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

Ø     महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के कार्यान्वयन में विशेष स्थानीय हालात को ध्यान में रखने की ज़रूरत है तथा ग्रामीण विकास में प्रगति लाने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं को आपस में जोड़ने के लिए नवप्रयासों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

Ø     भ्रष्टाचार कतई सहन न करने और जन सेवा के उच्च मानदंडों को अपनाने से कार्यदक्षता बढेग़ी और विकास एवं तरक्की को प्रोत्साहन मिलेगा।

Ø     नागरिकों को राष्ट्र के भविष्य को सुदृढ आैर उज्ज्वल बनाने में योगदान देना चाहिए।

Ø     नागरिकों को कानून का पालन करना चाहिए और नैतिक उत्थान के लिए काम करना चाहिए। मजबूत पारिवारिक संबंध कमजोर होते जाना, दूसरों के प्रति असंवेदनशीलता बढना और सामाजिक जागरूकता में गिरावट चिंता का कारण है और इस स्थिति को बदला जाना चाहिए।

Ø     राष्ट्र निर्माण के लिए सामंजस्य की भावना ज़रूरी है। यह तभी संभव है जब बातचीत को संवाद का माध्यम चुना जाए। एक-दूसरे की बात सुनकर, एक-दूसरे के नज़रिए का आदर करके और एक-दूसरे को समझने से हम अपने समक्ष मौजूद मुद्दों का समाधान तलाश सकते हैं।

Ø     उग्र विचारधाराओं के प्रवर्तकों और वामपंथी उग्रवाद के रास्ते पर चलने वालों को हिंसा का रास्ता छोड़ देना चाहिए। उन्हें तरक्की और विकास के राष्ट्र के प्रयासों में शामिल होना चाहिए।

Ø     आतंकवाद विश्व की शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसे पराजित करने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि आतंकवादियों को कहीं कोई आश्रय, प्रशिक्षण की जगह, कोई वित्तीय साधन, कोई ढांचागत सहायता और उनकी विचारधारा की तरफदारी करने वाला न हो।

Ø     हमारे पास महान राष्ट्र का निर्माण करने की प्रतिभा है। सामूहिक इच्छा शक्ति एवं कड़ी मेहनत से हम इसे हासिल कर लेंगे।

 

चौसठवें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील का राष्ट्र के नाम संदेश

चौसठवें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील का राष्ट्र के नाम संदेश

 

        मेरे प्यारे देशवासियो,

 

       चौसठवें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संख्या पर मैं भारत और विदेशों में रह रहे आप सभी का हार्दिक अभिनंदन करती हूं । मैं, हमारी सीमाओं की रक्षा कर रहे सशस्त्र सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों के वीर जवानों के साथ-साथ केन्द्रीय तथा राज्य स्तर के पुलिस तथा आंतरिक सुरक्षा बलों का भी विशेष रूप से अभिनंदन करती हूं । मैं देश के प्रत्येक नागरिक का भी अभिनंदन करती हूं, जिनकी कड़ी मेहनत, उत्पादन कुशलता और उद्यमशीलता ने भारत को विश्व के अग्रणी देशों की श्रेणी में शामिल कर दिया है । मैं, हाल ही में, लेह में बादल फटने की घटना में अपने प्रियजनों को खोने वाले, इसमें घायल होने वाले तथा जिनकी सम्पत्ति नष्ट हुई है, उन सभी के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करती हूं ।

 

देशवासियो,

 

       हर वर्ष, हम अपने स्वतंत्रता दिवस को बहुत ही धूमधाम और खुशी के साथ मनाते हैं और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि इसी दिन, वर्षों की दासता के बाद, हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी । वास्तव में 15 अगस्त, 1947 का दिन, इतिहास में, एक ऐसे असाधारण उपलब्धि के दिन के रूप में याद किया जाता है, जब भारत ने अद्भुत सहनशीलता तथा अनूठे साधनों का प्रयोग करते हुए स्वतंत्रता प्राप्त की थी । महात्मा गांधी के नेतृत्व में, अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने का आंदोलन पूरे देश में फैल गया, जिससे देशवासी इतने प्रेरित हुए जैसा कि बिरले ही देखा जाता है । करोड़ों पुरुष और महिलाएं स्वेच्छा से, बढ-चढक़र आजादी की इस लड़ाई में शामिल हो गए और एक महाशक्ति बनकर उन्होंने दुनिया की सबसे मजबूत उपनिवेशवादी ताकत को हरा दिया । इस प्रकार स्वतंत्र भारत का उदय हुआ ।

 

       स्वतंत्र भारत के नागरिक होने के नाते हमें उन मूल्यों और सिध्दान्तों पर विचार करना चाहिए जो कि स्वतंत्रता के लिए लड़कर अपना जीवन बलिदान करने वालों के दिलोदिमाग में थे । उन्होंने सदियों से देश में सहेजे जा रहे मूल्यों से प्रेरणा प्राप्त की । पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार गांधी जी का उल्लेख ''भारत की एक ऐसी सनातन आत्मा, जिसने स्वतंत्रता की मशाल को जलाए रखा'', के रूप में किया था । गांधी जी के विचार और उनका जीवन, वास्तव में हमारी उस प्राचीन सभ्यता की विचारधारा की अभिव्यक्ति थे, जिसमें शांति और सौहार्द, अहिंसा और सत्य, मानव गरिमा तथा करुणा जैसे मूल्यों को प्रमुख स्थान दिया जाता था । क्या हम इन सिध्दांतों को भूलते जा रहे हैं ? क्या हम उनकी अनदेखी कर रहे हैं ? नहीं, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए । ये वे सतत् मूल्य हैं, जिन्होंने हमारे देश, हमारे समाज तथा हममें से प्रत्येक को व्यक्ति के रूप में पोषित किया है । गांधी जी की विचारधारा का अभी भी गहरा प्रभाव है और विश्व में इसकी प्रासंगिकता बढ रही है तथा प्रतिवर्ष उनके जन्मदिन, दो अक्तूबर को, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है ।

 

देशवासियो,

 

       आज हम उस ऐतिहासिक दौर में हैं, जब विश्व में बदलाव आ रहा है । यह बदलाव हमारी अर्थव्यवस्था, शासन तंत्र, व्यापार, वाणिज्य, शिक्षा तथा जीवन की गति को प्रभावित कर रहा है । बदलाव के इस युग में भारत को हरगिज पीछे नहीं रहना है । हमारा पूरा प्रयास ऐसा समग्र विकास सुनिश्चित करने का होना चाहिए, जिसमें सभी समृध्द हों । परंतु क्या ऐसा संभव है कि हमारे राजनीतिक दृष्टिकोण, आर्थिक उन्नति तथा वैज्ञानिक प्रगति को मानवता के कल्याण, सहिष्णुता, आपसी सम्मान तथा निस्वार्थता जैसे उन मूल्यों के साथ जोड़कर रखा जा सके, जिन्हें हमारे देश के विद्वानों, नेताओं, दार्शनिकों तथा चिंतकों द्वारा पोषित किया जाता रहा है ? हमारा इतिहास और भविष्य एक दूसरे के पूरक हैं । जहां एक ओर भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है, वहीं इतिहास हमारा मार्गदर्शन कर रहा है ।

 

       हमारा इतिहास क्या रहा है ? भारत, एक परिपक्व तथा सद्भावनाप्रिय समाज है और विद्या ग्रहण करने की उसकी एक दीर्घ परम्परा रही है एवं इसका दर्शन हजारों वर्षों के अनुभवों तथा ज्ञान पर आधारित है । स्वामी विवेकानंद भारत का उल्लेख एक   ''ऐसी प्राचीन भूमि, जिसे ज्ञान ने किसी दूसरे देश में जाने से पहले अपना घर बनाया'', के रूप में करते हैं । हमारा देश वह देश है, जहां पर विभिन्न धर्मों का उदय हुआ है तथा जहां विश्व के सभी धर्मों को स्थान मिला है । हमारा देश वह देश है, जहां विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और रीति-रिवाजों को फलने-फूलने का अवसर मिला है । भारत अपनी धार्मिकता, विद्वता तथा अपने शिक्षा केन्द्रों के लिए इतना विख्यात था कि दुनिया भर से यात्री यहां आया करते थे । शुरू से ही भारत में प्रगति और नैतिक विकास अलग-अलग नहीं वरन् समवेत संकल्पना है । भारत की जितनी वैचारिक गहराई थी, उतनी ही भौतिक समृध्दि थी । यहां बनने वाले बढिया सामान, मसाले, रेशम और सूत की बहुत मांग थी । भारत के व्यापारी सुदूर पूर्व तथा पश्चिम के देशों की यात्रा किया करते थे तथा अपने साथ न केवल भारत से सामान ले जाते थे बल्कि एक महान सांस्कृतिक तथा समृध्दिशाली देश की इसकी छवि का भी प्रचार करते थे ।

 

       हम एक ऐसी महान सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं, जिसकी विरासत एक पीढी से दूसरी पीढी क़ो सौंपी जाती रही है । यदि हम राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक न्याय के आदर्शों को सही मायने में अपना लें तो हम इसके सच्चे उत्तराधिकारी हो सकते हैं । केवल बातों से काम नहीं चलेगा । हमें दृढ संक़ल्प होकर इनका पालन करना होगा । हम पर अपनी 54 करोड़ युवाओं की इस नई पीढी क़ो अपनी समृध्द विरासत को सौंपने का भी दायित्व है । हमें उन पर पूरा भरोसा है, और ऐसा करना उचित भी है । वे देश-विदेश में विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों के क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं तथा योग्यताओं का प्रदर्शन कर रहे हैं । बहुराष्ट्रीय व्यापारिक उपक्रम हों, सूचना तकनीकी हो अथवा वित्तीय संगठन हों या फिर विश्व-स्तरीय वैज्ञानिक संस्थान हों, युवा भारतीय इन सभी में कार्य करके उन पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं । खेल के क्षेत्र में वे अपने देश के लिए नाम कमा रहे हैं । हमारे युवा, देश के भविष्य के निर्माता हैं । हमें उन्हें शिक्षित करना है और उनमें बलिदान, समर्पण, देशभक्ति तथा राष्ट्र-सेवा जैसी भावनाओं का समावेश भी करना है । इस तरह से, वे विश्वास के साथ भविष्य का सामना करने के लिए तैयार होंगे तथा अभी तक प्राप्त उपलब्धियों को आगे बढाएंगे ।

 

प्यारे देशवासियो,

 

       आज हमारा देश किस स्थिति में है? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में हमारी विश्वसनीयता सभी स्तरों पर लोकतंत्र मजबूत होने से और बढी है । हमारे यहां राष्ट्रीय स्तर से लेकर बुनियादी स्तर तक निर्वाचित संस्थाएं मौजूद हैं । लोकतंत्र ने नागरिकों को देश के क्रियाकलापों में भाग लेने का अधिकार प्रदान किया है और आज यह भारत में जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है । आर्थिक क्षेत्र में खरीद की क्षमता की तुलना के आधार पर हम विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और सबसे तेजी से उन्नतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं । हमारी अर्थव्यवस्था का लचीलापन वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान दिखाई दिया, जिसका सामना हमने बहुत से देशों के मुकाबले अधिक बेहतर ढंग से किया । हमारे लिए भविष्य बहुत-सी संभावनाओं और उम्मीदों से पूर्ण है । तथापि, बहुत से मुद्दों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है और यह और भी जरूरी है कि हम उनका समाधान किस तरह करते हैं ।

 

       हमारा सबसे पहला काम सभी का कल्याण सुनिश्चित करना है । इसी वजह से भारत ने अपने आर्थिक ढांचे के आधार के रूप में समावेशी विकास को अपनाया है और वह इसे सक्रियता से अमल में ला रहा है । हमारा कार्य तभी पूरा होगा जब कोई भी भूखा नहीं सोएगा, किसी को फुटपाथ पर नहीं सोना पड़ेगा और हर एक बच्चा स्कूल जाएगा । इसलिए सरकार के कार्यक्रम में, शिक्षा, दक्षता विकास, आवास, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण को प्राथमिकता दी गई है, जो कि स्वाभाविक है । हम सभी को एक बार सोचना चाहिए कि एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हम इन क्षेत्रों में किए जा रहे सरकार के प्रयासों में किस प्रकार अपना योगदान कर सकते हैं । एक अरब से अधिक की आबादी के लिए यह एक विशाल कार्य है, लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी है। हर गांव और नगर, शहर और महानगर की हर कॉलोनी में लोग आगे आकर सभी गरीबों के हित के लिए काम करने के लिए समूह बना सकते हैं । हममें से कुछ लोग यह पूछेंगे कि इन मामूली कोशिशों से क्या फर्क पड़ेगा ? उनके लिए मुझे एक ऐसे व्यक्ति की कहानी याद आ रही है जो तूफान गुजरने के कुछ ही समय के बाद समुद्र के किनारे पर चल रहा था । उसने अपने से आगे एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो उन तारा मछलियों को उठा-उठाकर वापस समुद्र में डाल रहा था जो तूफान के साथ तट पर पहुंच गई थीं । उसने उस व्यक्ति से पूछा कि समुद्र का किनारा इतना लम्बा है, आखिर तुम्हारी इन कोशिशों से क्या फर्क पड़ेगा, क्योंकि लाखों तारा मछलियां किनारे पर फेंकी गई हैं और वे मर जाएंगी । उस आदमी ने अपने हाथ में पकड़ी हुई तारा मछली को देखा और उसे समुद्र में फेंकते हुए कहा, ''इसे तो फर्क पड़ेगा।'' संदेश बिलकुल स्पष्ट है, कोशिश चाहे छोटी हो या बड़ी, उससे फर्क पड़ता है ।

 

 

प्यारे देशवासियो,

 

       मैं समझती हूं कि शिक्षा के द्वारा सशक्तिकरण जरूरी है क्योंकि इससे अवसरों के बहुत से दरवाजे खुल जाते हैं । शिक्षा का अधिकार अधिनियम द्वारा बच्चों के लिए नि:शुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है । यह आवश्यक है कि माध्यमिक शिक्षा भी सभी को उपलब्ध हो क्योंकि हमारा प्रयास उच्चतर शिक्षा में विद्यार्थियों की संख्या बढाने का है । इससे देश को ''बौध्दिक शक्ति'' प्राप्त होगी । हम ऐसे युग में रह रहे हैं, जब नई-नई खोजों से मानवीय कार्यकलापों के बहुत से क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं । नई तकनीकों से हमारी कृषि तथा औद्योगिक उत्पादकता में वृध्दि हो सकती है । उन्नत तकनीकों से पूंजी, श्रम और संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो सकता है । हमने मोबाइल टेलीफोन सुविधा का असर अपने गांव पर भी देखा है । नव-प्रयोगों तथा आविष्कारों को सदैव ही परिवर्तन के कारक के रूप में प्राथमिकता दी जाती रही है परंतु इन्हें पहले इतनी अधिक प्राथमिकता कभी भी नहीं दी गई थी जितनी आज दी जा रही है । धनी और निर्धन, विकसित और विकासशील देशों का वर्गीकरण आगे चलकर राष्ट्रों के ऐसे वर्गों में विकसित हो सकता है, जिसमें एक ओर ऐसे राष्ट्र होंगे जो तेजी से नव-प्रयोग कर रहे हैं और दूसरी ओर वह राष्ट्र होंगे जो यह कार्य धीमी गति से कर रहे हैं । उन्नत तकनीकों में आगे बने रहने के लिए देश में सभी क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करते हुए प्रयास किए जाने जरूरी हैं ।

 

       हमें भौतिक ढांचागत सुविधाओं के निर्माण में भी तेजी लानी होगी । हमें नई सड़कें, बंदरगाह, हवाई अड्डे, विद्युत परियोजनाओं की जरूरत है और हमें मौजूदा  सुविधाओं में सुधार भी करना होगा। इस बढोत्तरी से हमारी ऐसी ढांचागत कमियां दूर होंगी जो समग्र आर्थिक प्रगति में बाधक हैं और कई नजरियों से उभरती हुई विश्व शक्ति की हमारी छवि से मेल नहीं खातीं।

 

       हमारे उद्योगों को प्रगति करते रहना चाहिए। भारतीय कंपनियों को कुशल और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्ध्दी बनने के प्रयास जारी रखने चाहिए। इनमें से कुछ पहले ही विदेशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं। दूसरी हरित क्रान्ति की दिशा में आगे बढने क़े लिए हमारे कृषि क्षेत्र को नई दिशाओं और ताजा विचारों सहित पूर्णत: अलग चिंतन की जरूरत है, ताकि कृ31षि पैदावार, उत्पादकता और मुनाफा बढ सक़े। यह खाद्य सुरक्षा और कीमतों में स्थिरता के लिए बहुत आवश्यक है। इसके साथ-साथ कृषि को अलग-थलग नहीं रखा जाना चाहिए। इसे अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों के साथ जोड़ा जाना जरूरी है। उद्योगों को कृषि  के साथ जोड़ने से ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक विकास को आधार मिलेगा और कृ31षि संबंधी व्यापार को भी बढावा मिलेगा। किसानों के हित की रक्षा करते हुए, खेती के ऐसे मॉडलों की खोज करनी होगी, जिनमें बड़े पैमाने पर खेती करके उत्पादन बढाया जा सके। किसानों  को उपभोक्ताओं से सीधे जोड़ने वाली कारगर वितरण व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि किसानों को अपने उत्पाद के लिए अधिक पैसा और उपभोक्ता को कम कीमत पर सामान मिल सके। उत्पादन स्थल पर मूल्य संवर्धन से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और आय के अवसर बढेंग़े। दक्षता विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और समाज कल्याण कार्यक्रमों के जरिए गांव के गरीबों और कृ31षि श्रमिकों की सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। महात्मा गांधी रा­ष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, आजीविका उपलब्ध करवाने की एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है। यदि इसके कार्यान्वयन के दौरान खास स्थानीय हालात को ध्यान में रखा जाए और विभिन्न योजनाओं को आपस में जोड़ने के लिए नव- प्रयासों को प्रोत्साहन दिया जाए तो गांवों की प्रगति में तेजी आएगी। उदाहरण के लिए, वर्षा सिंचित क्षेत्रों में खेती के उन्नत तरीके अपनाकर तथा मिट्टी और जल के संरक्षण के लिए तालाब और जलाशय बनाकर, उनका सही रखरखाव करते हुए गाद साफ करके, कृषि उत्पादकता को बढाया जा सकता है। इस तरह के कार्यकलापों को तालमेल से करने पर सार्थक बदलाव लाया जा सकता है।

 

       परन्तु निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों का पूरा होना प्रभावी शासन प्रणाली पर निर्भर करता है। नीतियां तैयार करने और कार्य क्षेत्र में जाकर अमल में लाने के लिए सरकार में कार्यरत लोगों को शक्तियां दी गई हैं। यह हमेशा याद रखना चाहिए कि इस शक्ति का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाए। भ्रष्टाचार बिल्कुल भी सहन न करने और जन सेवा के उच्च मानदंडों को अपनाने से शासन प्रणालियों की कारगरता जरूर कायम होगी और विकास और तरक्की कई गुना तेजी से होगी।

 

प्यारे देशवासियो,

 

       हमें कानून का पालन करना चाहिए तथा नैतिक उत्थान के लिए भी कार्य करना चाहिए। मैं इसका उल्लेख इसलिए कर रही हूं क्योंकि भौतिकवाद के बढने से एक दूसरे के प्रति संवेदनहीनता भी बढ रही है। मजबूत पारिवारिक संबंध कमजोर होते जा रहे हैं। सामाजिक जागरूकता में गिरावट आ रही है। कुछ सामाजिक बुराइयां जारी हैं। इसे बदलना होगा। आज फिर से नैतिक और सदाचार संबंधी नई चेतना को साथ लेकर नवीन सफलताएं प्राप्त करने का सबसे बढिया अवसर है। इस तरह हमारी प्रगति, सहृदयता, सहनशीलता और निस्वार्थ सेवा जैसे मूल्यों पर आधारित होगी जो कि मनु­ष्य जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इन मूल्यों से हमारा बहुसांस्कृतिक, बहुधर्मी, बहुभाषी समाज और भी अधिक सुदृढ बनेगा। इनसे हमें एक मजबूत आधार भी मिलेगा, जिस पर समृध्दि और प्रगति का एक स्थाई ढांचा तैयार किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, आकाश में ऊँची उड़ान भरती हुई पतंग पर हवा और बादल असर डालते हैं। यदि डोर मजबूत होगी और इसे कुशलता के साथ उड़ाया जाएगा तो यह उड़ती रहेगी अन्यथा यह इधर-उधर भटक जाएगी, कट जाएगी और नीचे गिर कर न­ष्ट हो जाएगी। यह पतंग काफी हद तक हमारी विकास की यात्रा की तरह है और इसको चलाने के लिए मजबूत डोर और दृढता, नैतिक आधार की तरह है। भारत असंख्य मूल्यों का भंडार है। आइए, प्रगति के पथ पर बढते हुए भी इन्हें कायम रखने का प्रयास करें।

 

       आज की कड़ी मेहनत से ही कल के भारत का निर्माण होगा। मैं सभी नागरिकों का आह्वान करती हूँ कि वे राष्ट्र के भवि­ष्य को सुदृढ आैर उज्ज्वल बनाने में योगदान दें। हम सभी को इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी भूमिका और जिम्मेदारी समझ लेनी चाहिए। जैसा कि मैंने पहले कहा है, हर कोशिश का महत्त्व है। राष्ट्र निर्माण के लिए लगन और धैर्य से कार्य करने की क्षमता की जरूरत होगी और इसमें निजी फायदे के बजाय रा­ष्ट्र का विकास ही एक पुरस्कार है। इसके लिए लक्ष्य एक होना चाहिए और ऐसे मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है जो कि हममें एकता ला सकें।  इसके लिए सामंजस्य की भावना जरूरी है। यह तभी संभव है जबकि बातचीत को संवाद का माध्यम चुना जाए। एक-दूसरे की बात सुनने से और एक-दूसरे के आपसी नजरियों का आदर करने से तथा एक-दूसरे को समझने से, हम अपने सामने मौजूद मुद्दों का समाधान ढूंढ सक़ते हैं। उग्र विचारधाराओं के प्रवर्तकों और वामपंथी उग्रवाद के हिमायतियों को हिंसा का रास्ता छोड़ देना चाहिए। मैं उनका आह्वान करती हूँ कि वे तरक्की और विकास के रा­ष्ट्रीय प्रयासों में शामिल हों। मुझे उम्मीद है कि सिविल समाज के सभी सदस्य और सभी व्यक्ति आगे आकर उनको इस दिशा में आगे बढने में सहयोग देंगे। इन क्षेत्रों में विकास के निरन्तर प्रयासों की जरूरत पड़ेगी।

 

प्यारे देशवासियो,

      

       भारत का विकास और प्रगति ऐसे माहौल में होगी जो कि विश्व घटनाक्रमों से  भी प्रभावित होता है। हम मानते हैं कि अगर समृध्दि प्राप्त करनी है तो शान्ति जरूरी है। आतंकवाद विश्व की शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसे पराजित करने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर काम करना होगा ताकि आतंकवादियों को कहीं कोई आश्रय, प्रशिक्षण की जगह, कोई वित्तीय साधन, कोई ढांचागत सहायता न मिले और उनकी विचारधारा की कोई हिमायत करने वाला न हो।  विश्व में हिंसा और नफरत का कोई स्थान नहीं हो सकता। वास्तव में मनु­ष्य के रूप में हमारे जो साझे हित हैं, वे विघटनकारी ताकतों से कहीं ज्यादा मजबूत हैं। यदि विज्ञान और तकनीकी  में तेज गति से विकास करने वाली इस शताब्दी को मानव द्वारा, मानवीय मूल्यों के साथ हासिल, शानदार उपलब्धियों की शताब्दी बनाना है तो दुनिया को विनाश का नहीं शांति का संदेश देना होगा। मुझे विश्वास है कि भारत मनुष्य जाति की प्रगति में बढ-चढक़र योगदान देगा।

 

       मनु­ष्य में नई ऊंचाइयां छूने की अपार क्षमता है। स्वयं पर भरोसा, मिलजुलकर कार्य करने की हमारी क्षमता तथा सफलता पर हमारे विश्वास के साथ, हम अपनी यात्रा जारी रखेंगे। हममें एक महान राष्ट्र  का निर्माण करने की क्षमता है और अपनी सामूहिक इच्छा शक्ति व मेहनत से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। और आज जब हम प्रगति-पथ पर आगे बढ रहे हैं तथा ध्वज शान से फहरा रहा है, जैसा कि यह कल स्वतंत्रता दिवस पर भी फहराएगा, तब हम एक विख्यात भारतीय कवि की इन पंक्तियों का गर्व से उल्लेख कर सकेंगे :

 

               गगन-गगन तेरा यश फहरा,

               पवन-पवन तेरा बल गहरा।

 

       इन्हीं शब्दों के साथ, मैं स्वतंत्रता दिवस के इस पावन अवसर पर एक बार फिर अपने देशवासियों की शांति, समृध्दि और प्रगति की कामना करती हूँ।

 

       जय हिन्द।