शुक्रवार, मई 01, 2015

महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमरों का साम्राज्य- 4

दिल्ली की किल्ली : क्यों गाड़ी महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने किल्ली , कैसे बने दिल्लीपति , क्यों कहा गया ‘’ दिल्ली फिर होगी तोमर की’’
महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमरों का साम्राज्य- 4 
* पांडवों की तीन भारी ऐतिहासिक भूलें और बदल गया समूचे महाभारत का इतिहास * भारत नाम किसी भूखंड या देश का नहीं , एक राजकुल का है, जानिये क्यों कहते हैं तोमरों को भारत * ययाति और पुरू के वंशज चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजपूत ( पौरव - पांडव ) * दिल्ली की किल्ली का वजन , महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की तलवार के ऐन बराबर
नरेन्द्र  सिंह तोमर ‘’आनंद’’ ( एडवोकेट )
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( गतांक से आगे भाग-4  ) पिछले अंक में दिल्ली की किल्ली का जिक्र आ चुका है, या कहिये कि ‘’दिल्ली की किल्ली’’ जिसे आज लौह स्तम्भ या भीमलाट कहा जाता है और आज के महरौली नामक स्थान पर कुतुब मीनार जिसे आजकल कहा जाता है , के निकट मौजूद व स्थापित है ( इस स्थान का नाम जबकि वंशावली एवं शास्त्रों एवं प्राप्त शि‍लालेखों एवं दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख के अनुसार अलग है, जिसका जिक्र हम आगे करेंगें, इसे जिसे कुतुब मीनार कहा जाता है,  उसका असल नाम विजय आरोह पूजन स्तंभ या श्री हरिपूजन व ध्वज पताका फहराने के लिये बनवाया गया एक समानांतर आरोही स्थल है , तोमर राजवंश की वंशावली में यह कीर्ति पताका ध्वज स्तंभ एवं श्री हरि दर्शन पूजन का आरोही स्थल के रूप में वर्णिवत है ।
आखि‍र क्यों गाड़ी गई दिल्ली में किल्ली
पांडव – चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजपूत – भारत – तोमर राजवंश द्वारा दिल्ली में किल्ली गाड़े जाने की पीछे अनेक वजह एक साथ सामने आती हैं , स्वयं दिल्ली की किल्ली अर्थात ‘’लौह स्तम्भ ‘’ पर उत्कीर्ण लेख , इंद्रप्रस्थ के किले व लालकोट परिसर में मिले शि‍लालेखों , समकालीन उसी वक्त लिखे गये विभि‍न्न व अन्यान्य ग्रंथों , जैसे पृथ्वीराज रासो और विबुध श्रीधर सहित तोमर राजवंश की वंशावली में ‘’दिल्ली की इस किल्ली ‘’ के गाड़े जाने की वजह और संपूर्ण वृत्तांत का ब्यौरा उपलब्ध है ।
आश्चर्य जनक एवं हैरत अंगेज विषय यह है कि अंग्रेजों ने भारत का पूरा 3 करोड़ 70 लाख वर्ष का इतिहास तो मिटाया सो मिटाया , सामने साक्षात खड़े इमारतों, किलों, भवनों और यहॉं तक कि दिल्ली की किल्ली का इतिहास भी पूरा का पूरा बदलने का प्रयास किया । अनेक फर्जी , औपन्यासिक व काल्पनिक राजाओं के नाम रच कर एक नया उपन्यास भारत का इतिहास के नाम से लिख डाला ।
दिल्ली में किल्ली गाड़े जाने के बारे में किल्ली पर लिखे लेख , और नजदीक स्थापित संस्कृत के अति प्राचीन शि‍लालेख और दिल्ली म्यूजियम में रखे इंद्रप्रस्थ किले व लालकोट परिसर सहित भारत के अन्य भागों से मिले अति प्राचीन शि‍लालेख तोमर राजवंश की वंशावली, विबुध श्रीधर और पृथ्वीराज रासो ग्रंथ में लिखी बातों की न केवल पुष्टि  करते हैं बल्किव सौ फीसदी प्रमाणि‍त भी करते हैं ।
दिल्ली की किल्ली गाड़ने की संक्षेप में यदि वजह व कारण वर्णित किया जाये तो निष्कर्षत: चंद बातें यहॉं टीका रूप में कहेंगें और अगले अंक में संस्कृत में लिखा शि‍लालेख का असल चित्र , उसका असल हिन्दी अनुवाद और बगल में लगाया गया उसी संस्कृत भाषा का ‘’फर्जी अंग्रेजी अनुवाद , यानि संस्कृत में कुछ और लिखा है तथा उसके अंग्रेजी अनुवाद में कुछ और लिखा है , आप स्वयं इन दोनों चित्रों को इस आलेख के अगले अंक में देखगें और संस्कृत के शि‍लालेख का असली हिन्दी अनुवाद भी यहॉं पढ़ेंगें, मजे की बात यह है कि इस संस्कृत शि‍लालेख का हिन्दी अनुवाद वहॉं पर न तो किया गया और न स्थापित किया गया , आप इस जालसाजी , कूटरचना व फर्जीकरण को स्वयं अपनी ऑंखों से यहॉं एकदम स्पष्टत: देखेंगें ।
दिल्ली की किल्ली का वजन , महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की तलवार के बराबर
सप्त सिन्धुओं यानि सातों समुद्रों , सम्पूर्ण पृथ्वी , संपूर्ण पर्वतों के स्वामी चक्रवर्ती महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर में इतना बल था कि वे अकेले ही केवल एक हाथ से ही अपनी तलवार से पूरी की पूरी अहौक्षणी कोटि सेना को रोक देते थे, महापराक्रमी चन्द्र वंश का यह क्षत्रिय तोमर राजपूत राजा इतना तेजस्वी व महाबली था कि तोमर राजवंश के राजगुरू व्यास जी पराक्रमी चक्रवर्ती सम्राट इन्द्रप्रस्थ दरबार अनंगपाल सिंह तोमर के समक्ष पधारे , तोमर राजवंश में लहराती फहराती सनातन धर्म की धर्मध्वजा , पंचरंगी पताका और अनंगपाल सिंह तोमर का चक्रवर्ती साम्राज्य देख बहुत प्रसन्न हुये और लोक से परलोक तक तोमर राजवंश की लहराती फहराती विजय व धर्म पताका पर अपना हर्ष जताया और महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के साम्राजय काल में कलयुग के निष्प्रभावी रहने व नियत स्थानों में सीमित रहने पर व्यास जी ने महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर से आशीर्वाद स्वरूप कुछ चर्चायें की, विचार विमर्श किया , और आने वाली भावी होनी , और भविष्य में होने वाली अनहोनी के प्रति सचेत किया,  व्यास जी ने कहा कि अब धर्म का धरा से विदा होने का वक्त आ चुका है, तोमर राजसत्ता का विश्व से साम्राज्य समाप्ति का वक्त आ चुका है ...... 
क्रमश: अगले अंक में जारी